26th MARCH 1907 - 11th SEPTEMBER 1987 MAHADEVI VERMA
- Mahadevi Varma
- Born: March 26, 1907, Farrukhabad
- Education: University Of Allahabad (1933), University Of Allahabad(1929)
महादेवी वर्मा
मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
महादेवी वर्मा![]() महादेवी वर्मा ‘आजकल’ के मुखपृष्ठ से | |
जन्म: | २६ मार्च, १९०७ फ़र्रुख़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत |
---|---|
मृत्यु: | ११ सितंबर, १९८७ इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत |
कार्यक्षेत्र: | अध्यापक, लेखक |
राष्ट्रीयता: | भारतीय |
भाषा: | हिन्दी |
काल: | आधुनिक काल |
विधा: | गद्य और पद्य |
विषय: | गीत, रेखाचित्र, संस्मरण व निबंध |
साहित्यिक आन्दोलन: | छायावाद व रहस्यवाद |
प्रमुख कृति(याँ): | यामा कविता संग्रह |
हस्ताक्षर: | ![]() |
महादेवी वर्मा (२६ मार्च १९०७ — ११ सितंबर १९८७) हिन्दी की सर्वाधिक प्रतिभावान कवयित्रियों में से हैं। वे हिन्दी साहित्य में छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों[क] में से एक मानी जाती हैं।[1] आधुनिक हिन्दी की सबसे सशक्त कवयित्रियों में से एक होने के कारण उन्हें आधुनिक मीरा के नाम से भी जाना जाता है।[2] कवि निराला ने उन्हें “हिन्दी के विशाल मन्दिर की सरस्वती” भी कहा है।[ख] महादेवी ने स्वतंत्रता के पहले का भारत भी देखा और उसके बाद का भी। वे उन कवियों में से एक हैं जिन्होंने व्यापक समाज में काम करते हुए भारत के भीतर विद्यमान हाहाकार, रुदन को देखा, परखा और करुण होकर अन्धकार को दूर करने वाली दृष्टि देने की कोशिश की।[3] न केवल उनका काव्य बल्कि उनके सामाजसुधार के कार्य और महिलाओं के प्रति चेतना भावना भी इस दृष्टि से प्रभावित रहे। उन्होंने मन की पीड़ा को इतने स्नेह और शृंगार से सजाया कि दीपशिखा में वह जन-जन की पीड़ा के रूप में स्थापित हुई और उसने केवल पाठकों को ही नहीं समीक्षकों को भी गहराई तक प्रभावित किया।[ग]
उन्होंने खड़ी बोली हिन्दी की कविता में उस कोमल शब्दावली का विकास किया जो अभी तक केवल बृजभाषा में ही संभव मानी जाती थी। इसके लिए उन्होंने अपने समय के अनुकूल संस्कृत और बांग्ला के कोमल शब्दों को चुनकर हिन्दी का जामा पहनाया। संगीत की जानकार होने के कारण उनके गीतों का नाद-सौंदर्य और पैनी उक्तियों की व्यंजना शैली अन्यत्र दुर्लभ है। उन्होंने अध्यापन से अपने कार्यजीवन की शुरूआत की और अंतिम समय तक वे प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्रधानाचार्या बनी रहीं। उनका बाल-विवाह हुआ परंतु उन्होंने अविवाहित की भांति जीवन-यापन किया। प्रतिभावान कवयित्री और गद्य लेखिका महादेवी वर्मा साहित्य और संगीत में निपुण होने के साथ-साथ[4] कुशल चित्रकार और सृजनात्मक अनुवादक भी थीं। उन्हें हिन्दी साहित्य के सभी महत्त्वपूर्ण पुरस्कार प्राप्त करने का गौरव प्राप्त है। भारत के साहित्य आकाश में महादेवी वर्मा का नाम ध्रुव तारे की भांति प्रकाशमान है। गत शताब्दी की सर्वाधिक लोकप्रिय महिला साहित्यकार के रूप में वे जीवन भर पूजनीय बनी रहीं।[5] वर्ष २००७ उनकी जन्म शताब्दी के रूप में मनाया गया।
अनुक्रम
[छुपाएँ]जीवनी
मुख्य लेख : महादेवी वर्मा का जीवन परिचय
जन्म और परिवार
महादेवी का जन्म २६ मार्च १९०७ को प्रातः ८ बजे[6] फ़र्रुख़ाबाद उत्तर प्रदेश, भारत में हुआ। उनके परिवार में लगभग २०० वर्षों या सात पीढ़ियों के बाद पहली बार पुत्री का जन्म हुआ था। अतः बाबा बाबू बाँके विहारी जी हर्ष से झूम उठे और इन्हें घर की देवी — महादेवी मानते हुए[6] पुत्री का नाम महादेवी रखा। उनके पिता श्री गोविंद प्रसाद वर्मा भागलपुर के एक कॉलेज में प्राध्यापक थे। उनकी माता का नाम हेमरानी देवी था। हेमरानी देवी बड़ी धर्म परायण, कर्मनिष्ठ, भावुक एवं शाकाहारी महिला थीं।[6] विवाह के समय अपने साथ सिंहासनासीन भगवान की मूर्ति भी लायी थीं[6] वे प्रतिदिन कई घंटे पूजा-पाठ तथा रामायण, गीता एवं विनय पत्रिका का पारायण करती थीं और संगीत में भी उनकी अत्यधिक रुचि थी। इसके बिल्कुल विपरीत उनके पिता गोविन्द प्रसाद वर्मा सुन्दर, विद्वान, संगीत प्रेमी, नास्तिक, शिकार करने एवं घूमने के शौकीन, मांसाहारी तथा हँसमुख व्यक्ति थे। महादेवी वर्मा के मानस बंधुओं में सुमित्रानंदन पंत एवं निराला का नाम लिया जा सकता है, जो उनसे जीवन पर्यन्त राखी बँधवाते रहे।[7] निराला जी से उनकी अत्यधिक निकटता थी,[8] उनकी पुष्ट कलाइयों में महादेवी जी लगभग चालीस वर्षों तक राखी बाँधती रहीं।[9]
शिक्षा
महादेवी जी की शिक्षा इंदौर में मिशन स्कूल से प्रारम्भ हुई साथ ही संस्कृत, अंग्रेज़ी, संगीत तथा चित्रकला की शिक्षा अध्यापकों द्वारा घर पर ही दी जाती रही। बीच में विवाह जैसी बाधा पड़ जाने के कारण कुछ दिन शिक्षा स्थगित रही। विवाहोपरान्त महादेवी जी ने १९१९ में क्रास्थवेट कॉलेज इलाहाबाद में प्रवेश लिया और कॉलेज के छात्रावास में रहने लगीं। १९२१ में महादेवी जी ने आठवीं कक्षा में प्रान्त भर में प्रथम स्थान प्राप्त किया। यहीं पर उन्होंने अपने काव्य जीवन की शुरुआत की। वे सात वर्ष की अवस्था से ही कविता लिखने लगी थीं और १९२५ तक जब उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की, वे एक सफल कवयित्री के रूप में प्रसिद्ध हो चुकी थीं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी कविताओं का प्रकाशन होने लगा था। कालेज में सुभद्रा कुमारी चौहान के साथ उनकी घनिष्ठ मित्रता हो गई। सुभद्रा कुमारी चौहान महादेवी जी का हाथ पकड़ कर सखियों के बीच में ले जाती और कहतीं ― “सुनो, ये कविता भी लिखती हैं”। १९३२ में जब उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से संस्कृत में एम॰ए॰ पास किया तब तक उनके दो कविता संग्रह नीहार तथा रश्मि प्रकाशित हो चुके थे।
वैवाहिक जीवन
सन् १९१६ में उनके बाबा श्री बाँके विहारी ने इनका विवाह बरेली के पास नबाव गंज कस्बे के निवासी श्री स्वरूप नारायण वर्मा से कर दिया, जो उस समय दसवीं कक्षा के विद्यार्थी थे। श्री वर्मा इण्टर करके लखनऊ मेडिकल कॉलेज में बोर्डिंग हाउस में रहने लगे। महादेवी जी उस समय क्रास्थवेट कॉलेज इलाहाबाद के छात्रावास में थीं। श्रीमती महादेवी वर्मा को विवाहित जीवन से विरक्ति थी। कारण कुछ भी रहा हो पर श्री स्वरूप नारायण वर्मा से कोई वैमनस्य नहीं था। सामान्य स्त्री-पुरुष के रूप में उनके सम्बंध मधुर ही रहे। दोनों में कभी-कभी पत्राचार भी होता था। यदा-कदा श्री वर्मा इलाहाबाद में उनसे मिलने भी आते थे। श्री वर्मा ने महादेवी जी के कहने पर भी दूसरा विवाह नहीं किया। महादेवी जी का जीवन तो एक संन्यासिनी का जीवन था ही। उन्होंने जीवन भर श्वेत वस्त्र पहना, तख्त पर सोईं और कभी शीशा नहीं देखा। सन् १९६६ में पति की मृत्यु के बाद वे स्थाई रूप से इलाहाबाद में रहने लगीं।
कार्यक्षेत्र
महादेवी का कार्यक्षेत्र लेखन, संपादन और अध्यापन रहा। उन्होंने इलाहाबाद में प्रयाग महिला विद्यापीठ के विकास में महत्वपूर्ण योगदान किया। यह कार्य अपने समय में महिला-शिक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी कदम था। इसकी वे प्रधानाचार्य एवं कुलपति भी रहीं। १९३२ में उन्होंने महिलाओं की प्रमुख पत्रिका ‘चाँद’ का कार्यभार संभाला। १९३० में नीहार, १९३२ में रश्मि, १९३४ में नीरजा, तथा १९३६ में सांध्यगीत नामक उनके चार कविता संग्रह प्रकाशित हुए। १९३९ में इन चारों काव्य संग्रहों को उनकी कलाकृतियों के साथ वृहदाकार में यामा शीर्षक से प्रकाशित किया गया। उन्होंने गद्य, काव्य, शिक्षा और चित्रकला सभी क्षेत्रों में नए आयाम स्थापित किये। इसके अतिरिक्त उनकी 18 काव्य और गद्य कृतियां हैं जिनमें मेरा परिवार, स्मृति की रेखाएं, पथ के साथी, शृंखला की कड़ियाँ और अतीत के चलचित्र प्रमुख हैं। सन १९५५ में महादेवी जी ने इलाहाबाद में साहित्यकार संसद की स्थापना की और पं इलाचंद्र जोशी के सहयोग से साहित्यकार का संपादन संभाला। यह इस संस्था का मुखपत्र था। उन्होंने भारत में महिला कवि सम्मेलनों की नीव रखी।[10] इस प्रकार का पहला अखिल भारतवर्षीय कवि सम्मेलन १५ अप्रैल १९३३ को सुभद्रा कुमारी चौहान की अध्यक्षता में प्रयाग महिला विद्यापीठ में संपन्न हुआ।[11] वे हिंदी साहित्य में रहस्यवाद की प्रवर्तिका भी मानी जाती हैं।[12] महादेवी बौद्ध धर्म से बहुत प्रभावित थीं। महात्मा गांधी के प्रभाव से उन्होंने जनसेवा का व्रत लेकरझूसी में कार्य किया और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भी हिस्सा लिया। १९३६ में नैनीताल से २५ किलोमीटर दूर रामगढ़ कसबे के उमागढ़ नामक गाँव में महादेवी वर्मा ने एक बँगला बनवाया था। जिसका नाम उन्होंने मीरा मंदिर रखा था। जितने दिन वे यहाँ रहीं इस छोटे से गाँव की शिक्षा और विकास के लिए काम करती रहीं। विशेष रूप से महिलाओं की शिक्षा और उनकी आर्थिक आत्मनिर्भरता के लिए उन्होंने बहुत काम किया। आजकल इस बंगले को महादेवी साहित्य संग्रहालय के नाम से जाना जाता है।[13][14] शृंखला की कड़ियाँ में स्त्रियों की मुक्ति और विकास के लिए उन्होंने जिस साहस व दृढ़ता से आवाज़ उठाई हैं और जिस प्रकार सामाजिक रूढ़ियों की निंदा की है उससे उन्हें महिला मुक्तिवादी भी कहा गया।[15] महिलाओं व शिक्षा के विकास के कार्यों और जनसेवा के कारण उन्हें समाज-सुधारक भी कहा गया है।[16]उनके संपूर्ण गद्य साहित्य में पीड़ा या वेदना के कहीं दर्शन नहीं होते बल्कि अदम्य रचनात्मक रोष समाज में बदलाव की अदम्य आकांक्षा और विकास के प्रति सहज लगाव परिलक्षित होता है।[17]
उन्होंने अपने जीवन का अधिकांश समय उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद नगर में बिताया। ११ सितंबर १९८७ को इलाहाबाद में रात ९ बजकर ३० मिनट पर उनका देहांत हो गया।
प्रमुख कृतियाँ
मुख्य लेख : महादेवी का रचना संसार
महादेवी जी कवयित्री होने के साथ-साथ विशिष्ट गद्यकार भी थीं। उनकी कृतियाँ इस प्रकार हैं।
कविता संग्रह
७. प्रथम आयाम (१९७४)
८. अग्निरेखा (१९९०)
|
श्रीमती महादेवी वर्मा के अन्य अनेक काव्य संकलन भी प्रकाशित हैं, जिनमें उपर्युक्त रचनाओं में से चुने हुए गीत संकलित किये गये हैं, जैसे आत्मिका, परिक्रमा, सन्धिनी (१९६५), यामा (१९३६), गीतपर्व, दीपगीत, स्मारिका, नीलांबरा और आधुनिक कवि महादेवी आदि।
महादेवी वर्मा का गद्य साहित्य
- रेखाचित्र: अतीत के चलचित्र (१९४१) और स्मृति की रेखाएं (१९४३),
- संस्मरण: पथ के साथी (१९५६) और मेरा परिवार (१९७२ और संस्मरण (१९८३))
- चुने हुए भाषणों का संकलन: संभाषण (१९७४)
- निबंध: शृंखला की कड़ियाँ (१९४२), विवेचनात्मक गद्य (१९४२), साहित्यकार की आस्था तथा अन्य निबंध (१९६२), संकल्पिता (१९६९)
- ललित निबंध: क्षणदा (१९५६)
- कहानियाँ: गिल्लू
- संस्मरण, रेखाचित्र और निबंधों का संग्रह: हिमालय (१९६३),
अन्य निबंध में संकल्पिता तथा विविध संकलनों में स्मारिका, स्मृति चित्र, संभाषण, संचयन, दृष्टिबोध उल्लेखनीय हैं। वे अपने समय की लोकप्रिय पत्रिका ‘चाँद’ तथा ‘साहित्यकार’ मासिक की भी संपादक रहीं। हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए उन्होंने प्रयाग में ‘साहित्यकार संसद’ और रंगवाणी नाट्य संस्था की भी स्थापना की।
महादेवी वर्मा का बाल साहित्य
महादेवी वर्मा की बाल कविताओं के दो संकलन छपे हैं।
- ठाकुरजी भोले हैं
- आज खरीदेंगे हम ज्वाला
समालोचना
मुख्य लेख : महादेवी की काव्यगत विशेषताएँ
आधुनिक गीत काव्य में महादेवी जी का स्थान सर्वोपरि है। उनकी कविता में प्रेम की पीर और भावों की तीव्रता वर्तमान होने के कारण भाव, भाषा और संगीत की जैसी त्रिवेणी उनके गीतों में प्रवाहित होती है वैसी अन्यत्र दुर्लभ है। महादेवी के गीतों की वेदना, प्रणयानुभूति, करुणा और रहस्यवाद काव्यानुरागियों को आकर्षित करते हैं। पर इन रचनाओं की विरोधी आलोचनाएँ सामान्य पाठक को दिग्भ्रमित करती हैं। आलोचकों का एक वर्ग वह है, जो यह मानकर चलते हैं कि महादेवी का काव्य नितान्त वैयक्तिक है। उनकी पीड़ा, वेदना, करुणा, कृत्रिम और बनावटी है।
- आचार्य रामचंद्र शुक्ल जैसे मूर्धन्य आलोचकों ने उनकी वेदना और अनुभूतियों की सच्चाई पर प्रश्न चिह्न लगाया है —[घ] दूसरी ओर
- आचार्य हज़ारी प्रसाद द्विवेदी जैसे समीक्षक उनके काव्य को समष्टि परक मानते हैं।[ङ]
- शोमेर ने ‘दीप’ (नीहार), मधुर मधुर मेरे दीपक जल (नीरजा) और मोम सा तन गल चुका है कविताओं को उद्धृत करते हुए निष्कर्ष निकाला है कि ये कविताएं महादेवी के ‘आत्मभक्षी दीप’ अभिप्राय को ही व्याख्यायित नहीं करतीं बल्कि उनकी कविता की सामान्य मुद्रा और बुनावट का प्रतिनिधि रूप भी मानी जा सकती हैं।
- सत्यप्रकाश मिश्र छायावाद से संबंधित उनकी शास्त्र मीमांसा के विषय में कहते हैं ― “महादेवी ने वैदुष्य युक्त तार्किकता और उदाहरणों के द्वारा छायावाद और रहस्यवाद के वस्तु शिल्प की पूर्ववर्ती काव्य से भिन्नता तथा विशिष्टता ही नहीं बतायी, यह भी बताया कि वह किन अर्थों में मानवीय संवेदन के बदलाव और अभिव्यक्ति के नयेपन का काव्य है। उन्होंने किसी पर भाव साम्य, भावोपहरण आदि का आरोप नहीं लगाया केवल छायावाद के स्वभाव, चरित्र, स्वरूप और विशिष्टता का वर्णन किया।”[18]
- प्रभाकर श्रोत्रिय जैसे मनीषी का मानना है कि जो लोग उन्हें पीड़ा और निराशा की कवयित्री मानते हैं वे यह नहीं जानते कि उस पीड़ा में कितनी आग है जो जीवन के सत्य को उजागर करती है।[च]
यह सच है कि महादेवी का काव्य संसार छायावाद की परिधि में आता है, पर उनके काव्य को उनके युग से एकदम असम्पृक्त करके देखना, उनके साथ अन्याय करना होगा। महादेवी एक सजग रचनाकार हैं। बंगाल के अकाल के समय १९४३ में इन्होंने एक काव्य संकलन प्रकाशित किया था और बंगाल से सम्बंधित “बंग भू शत वंदना” नामक कविता भी लिखी थी। इसी प्रकार चीन के आक्रमण के प्रतिवाद में हिमालय नामक काव्य संग्रह का संपादन किया था। यह संकलन उनके युगबोध का प्रमाण है।
गद्य साहित्य के क्षेत्र में भी उन्होंने कम काम नहीं किया। उनका आलोचना साहित्य उनके काव्य की भांति ही महत्वपूर्ण है। उनके संस्मरण भारतीय जीवन के संस्मरण चित्र हैं।
उन्होंने चित्रकला का काम अधिक नहीं किया फिर भी जलरंगों में ‘वॉश’ शैली से बनाए गए उनके चित्र धुंधले रंगों और लयपूर्ण रेखाओं का कारण कला के सुंदर नमूने समझे जाते हैं। उन्होंने रेखाचित्र भी बनाए हैं। दाहिनी ओर करीन शोमर की क़िताब के मुखपृष्ठ पर महादेवी द्वारा बनाया गया रेखाचित्र ही रखा गया है। उनके अपने कविता संग्रहों यामा और दीपशिखा में उनके रंगीन चित्रों और रेखांकनों को देखा जा सकता है।
पुरस्कार व सम्मान
उन्हें प्रशासनिक, अर्धप्रशासनिक और व्यक्तिगत सभी संस्थाओँ से पुरस्कार व सम्मान मिले।
- १९४३ में उन्हें ‘मंगलाप्रसाद पारितोषिक’ एवं ‘भारत भारती’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। स्वाधीनता प्राप्ति के बाद १९५२ में वे उत्तर प्रदेश विधान परिषद की सदस्या मनोनीत की गयीं। १९५६ में भारत सरकार ने उनकी साहित्यिक सेवा के लिये ‘पद्म भूषण’ की उपाधि दी। १९७९ में साहित्य अकादमी की सदस्यता ग्रहण करने वाली वे पहली महिला थीं।[19] 1988 में उन्हें मरणोपरांत भारत सरकार की पद्म विभूषण उपाधि से सम्मानित किया गया।[7]
- सन १९६९ में विक्रम विश्वविद्यालय, १९७७ में कुमाऊं विश्वविद्यालय, नैनीताल, १९८० में दिल्ली विश्वविद्यालय तथा १९८४ में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी ने उन्हें डी.लिट की उपाधि से सम्मानित किया।
- इससे पूर्व महादेवी वर्मा को ‘नीरजा’ के लिये १९३४ में ‘सक्सेरिया पुरस्कार’, १९४२ में ‘स्मृति की रेखाएँ’ के लिये ‘द्विवेदी पदक’ प्राप्त हुए। ‘यामा’ नामक काव्य संकलन के लिये उन्हें भारत का सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ प्राप्त हुआ।[20] वे भारत की ५० सबसे यशस्वी महिलाओं में भी शामिल हैं।[21]
- १९६८ में सुप्रसिद्ध भारतीय फ़िल्मकार मृणाल सेन ने उनके संस्मरण ‘वह चीनी भाई’[22] पर एक बांग्ला फ़िल्म का निर्माण किया था जिसका नाम था नील आकाशेर नीचे।[23]
- १६ सितंबर १९९१ को भारत सरकार के डाकतार विभाग ने जयशंकर प्रसाद के साथ उनके सम्मान में २ रुपए का एक युगल टिकट भी जारी किया है।[24]
महादेवी वर्मा का योगदान
साहित्य में महादेवी वर्मा का आविर्भाव उस समय हुआ जब खड़ीबोली का आकार परिष्कृत हो रहा था। उन्होंने हिन्दी कविता को बृजभाषा की कोमलता दी, छंदों के नये दौर को गीतों का भंडार दिया और भारतीय दर्शन को वेदना की हार्दिक स्वीकृति दी। इस प्रकार उन्होंने भाषा साहित्य और दर्शन तीनों क्षेत्रों में ऐसा महत्त्वपूर्ण काम किया जिसने आनेवाली एक पूरी पीढ़ी को प्रभावित किया। शचीरानी गुर्टू ने भी उनकी कविता को सुसज्जित भाषा का अनुपम उदाहरण माना है।[छ] उन्होंने अपने गीतों की रचना शैली और भाषा में अनोखी लय और सरलता भरी है, साथ ही प्रतीकों और बिंबों का ऐसा सुंदर और स्वाभाविक प्रयोग किया है जो पाठक के मन में चित्र सा खींच देता है।[ज] छायावादी काव्य की समृद्धि में उनका योगदान अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। छायावादी काव्य को जहाँ प्रसाद ने प्रकृतितत्त्व दिया, निराला ने उसमें मुक्तछंद की अवतारणा की और पंत ने उसे सुकोमल कला प्रदान की वहाँ छायावाद के कलेवर में प्राण-प्रतिष्ठा करने का गौरव महादेवी जी को ही प्राप्त है। भावात्मकता एवं अनुभूति की गहनता उनके काव्य की सर्वाधिक प्रमुख विशेषता है। हृदय की सूक्ष्मातिसूक्ष्म भाव-हिलोरों का ऐसा सजीव और मूर्त अभिव्यंजन ही छायावादी कवियों में उन्हें ‘महादेवी’ बनाता है।[25] वे हिन्दी बोलने वालों में अपने भाषणों के लिए सम्मान के साथ याद की जाती हैं। उनके भाषण जन सामान्य के प्रति संवेदना और सच्चाई के प्रति दृढ़ता से परिपूर्ण होते थे। वे दिल्ली में १९८३ में आयोजित तीसरे विश्व हिन्दी सम्मेलन के समापन समारोह की मुख्य अतिथि थीं। इस अवसर पर दिये गये उनके भाषण में उनके इस गुण को देखा जा सकता है।[26]
यद्यपि महादेवी ने कोई उपन्यास, कहानी या नाटक नहीं लिखा तो भी उनके लेख, निबंध, रेखाचित्र, संस्मरण, भूमिकाओं और ललित निबंधों में जो गद्य लिखा है वह श्रेष्ठतम गद्य का उत्कृष्ट उदाहरण है।[झ] उसमें जीवन का संपूर्ण वैविध्य समाया है। बिना कल्पना और काव्यरूपों का सहारा लिए कोई रचनाकार गद्य में कितना कुछ अर्जित कर सकता है, यह महादेवी को पढ़कर ही जाना जा सकता है। उनके गद्य में वैचारिक परिपक्वता इतनी है कि वह आज भी प्रासंगिक है।[ञ] समाज सुधार और नारी स्वतंत्रता से संबंधित उनके विचारों में दृढ़ता और विकास का अनुपम सामंजस्य मिलता है। सामाजिक जीवन की गहरी परतों को छूने वाली इतनी तीव्र दृष्टि, नारी जीवन के वैषम्य और शोषण को तीखेपन से आंकने वाली इतनी जागरूक प्रतिभा और निम्न वर्ग के निरीह, साधनहीन प्राणियों के अनूठे चित्र उन्होंने ही पहली बार हिंदी साहित्य को दिये।
मौलिक रचनाकार के अलावा उनका एक रूप सृजनात्मक अनुवादक का भी है जिसके दर्शन उनकी अनुवाद-कृत ‘सप्तपर्णा’ (१९६०) में होते हैं। अपनी सांस्कृतिक चेतना के सहारे उन्होंने वेद, रामायण, थेरगाथा तथा अश्वघोष, कालिदास, भवभूति एवं जयदेव की कृतियों से तादात्म्य स्थापित करके ३९ चयनित महत्वपूर्ण अंशों का हिन्दी काव्यानुवाद इस कृति में प्रस्तुत किया है। आरंभ में ६१ पृष्ठीय ‘अपनी बात’ में उन्होंने भारतीय मनीषा और साहित्य की इस अमूल्य धरोहर के संबंध में गहन शोधपूर्ण विमर्ष किया है जो केवल स्त्री-लेखन को ही नहीं हिंदी के समग्र चिंतनपरक और ललित लेखन को समृद्ध करता है।[27]
यह भी देखें
टीका-टिप्पणी
ग. ^ उन्होंने खड़ी बोली हिन्दी को कोमलता और मधुरता से संसिक्त कर सहज मानवीय संवेदनाओं की अभिव्यक्ति का द्वार खोला, विरह को दीपशिखा का गौरव दिया और व्यष्टि मूलक मानवतावादी काव्य के चिंतन को प्रतिष्ठापित किया। उनके गीतों का नाद-सौंदर्य और पैनी उक्तियों की व्यंजना शैली अन्यत्र दुर्लभ है। ―निशा सहगल[28]
घ. ^ “इस वेदना को लेकर उन्होंने हृदय की ऐसी अनुभूतियाँ सामने रखी हैं, जो लोकोत्तर हैं। कहाँ तक ये वास्तविक अनुभूतियाँ हैं और कहाँ तक अनुभूतियों की रमणीय कल्पना, यह नहीं कहा जा सकता।” ―आचार्य रामचंद्र शुक्ल
ङ. ^ “महादेवी का ‘मैं’ संदर्भ भेद से सबका नाम है।” सच्चाई यह है कि महादेवी व्यष्टि से समष्टि की ओर जाती हैं। उनकी पीड़ा, वेदना, करुणा और दुखवाद में विश्व की कल्याण कामना निहित है। ―हज़ारी प्रसाद द्विवेदी
च. ^ वस्तुत: महादेवी की अनुभूति और सृजन का केंद्र आँसू नहीं आग है। जो दृश्य है वह अन्तिम सत्य नहीं है, जो अदृश्य है वह मूल या प्रेरक सत्य है। महादेवी लिखती हैं: “आग हूँ जिससे ढुलकते बिन्दु हिमजल के” और भी स्पष्टता की माँग हो तो ये पंक्तियाँ देखें: मेरे निश्वासों में बहती रहती झंझावात/आँसू में दिनरात प्रलय के घन करते उत्पात/कसक में विद्युत अंतर्धान। ये आँसू सहज सरल वेदना के आँसू नहीं हैं, इनके पीछे जाने कितनी आग, झंझावात प्रलय-मेघ का विद्युत-गर्जन, विद्रोह छिपा है। ―प्रभाकर श्रोत्रिय[29]
ज. ^ महादेवी के प्रगीतों का रूप विन्यास, भाषा, प्रतीक-बिंब लय के स्तर पर अद्भुत उपलब्धि कहा जा सकता है। ―कृष्णदत्त पालीवाल[31]
झ. ^ एक महादेवी ही हैं जिन्होंने गद्य में भी कविता के मर्म की अनुभूति कराई और ‘गद्य कवीतां निकषं वदंति’ उक्ति को चरितार्थ किया है। विलक्षण बात तो यह है कि न तो उन्होंने उपन्यास लिखा, न कहानी, न ही नाटक फिर भी श्रेष्ठ गद्यकार हैं। उनके ग्रंथ लेखन में एक ओर रेखाचित्र, संस्मरण या फिर यात्रावृत्त हैं तो दूसरी ओर संपादकीय, भूमिकाएँ, निबंध और अभिभाषण, पर सबमें जैसे संपूर्ण जीवन का वैविध्य समाया है। बिना कल्पनाश्रित काव्य रूपों का सहारा लिए कोई रचनाकार गद्य में इतना कुछ अर्जित कर सकता है, यह महादेवी को पढ़कर ही जाना जा सकता है। ―रामजी पांडेय[32]
संदर्भ
- ↑ वर्मा 1985, पृष्ठ 38-40
- ↑ "Mahadevi Verma: Modern Meera" (अंग्रेज़ी में) (एचटीएमएल). लिटररी इंडिया. अभिगमन तिथि: 2007.
- ↑ "महादेवी का सर्जन : प्रतिरोध और करुणा" (एचटीएमएल). तद्भव. अभिगमन तिथि: 2007.
- ↑ "गद्यकार महादेवी वर्मा" (एचटीएमएल). ताप्तीलोक. अभिगमन तिथि: 2007.
- ↑ वशिष्ठ, आर.के. (2002). उत्तर प्रदेश (मासिक पत्रिका) अंक-7. लखनऊ, भारत: सूचना एवं जनसंपर्क विभाग, उ.प्र.. प॰ 24.
- ↑ अआ इ ई सिंह 2007, पृष्ठ 38-40
- ↑ अआ पांडेय 1968, पृष्ठ 10
- ↑ "जो रेखाएँ कह न सकेंगी" (एचटीएम). अभिव्यक्ति. अभिगमन तिथि: 2007.
- ↑ "महाकवि का बजट". नवभारत टाइम्स. 7 फरवरी, 2007.
- ↑ सुधा (मासिक पत्रिका). लखनऊ. मई 1933.
- ↑ चाँद (मासिक पत्रिका). लखनऊ. मई 1933.
- ↑ "Mahadevi Verma" (अंग्रेज़ी में) (एचटीएम). सॉनेट. अभिगमन तिथि: 2007.
- ↑ "Famous Personalities Mahadevi Verma" (अंग्रेज़ी में) (एएसपीएक्स). कुमाऊँ मंडल विकास निगम लिमिटेड. अभिगमन तिथि: 2007.
- ↑ "महादेवी पहाड़ों का वसंत मनाती थीं" (एचटीएम). इंद्रधनुष इंडिया. अभिगमन तिथि: 2007.
- ↑ "Forging a Feminist Path" (अंग्रेज़ी में) (एचटीएमएल). इंडिया टुगेदर. अभिगमन तिथि: 2007.
- ↑ "Mahadevi Verma" (अंग्रेज़ी में) (एचटीएमएल). वुमनअनलिमिटड. अभिगमन तिथि: 2007.
- ↑ "Mahadevi Verma" (अंग्रेज़ी में) (एचटीएमएल). वॉम्पो - वुमंस पॉयट्री लिस्टसर्व. अभिगमन तिथि: 2007.
- ↑ "महादेवी का सर्जन : प्रतिरोध और करुणा" (एचटीएमएल). तद्भव. अभिगमन तिथि: 2007.
- ↑ "Conferment of Sahitya Akademi Fellowship" (अंग्रेज़ी में) (एचटीएमएल). साहित्य अकैडमी. अभिगमन तिथि: 2007.
- ↑ "Jnanpith Award" (अंग्रेज़ी में) (एचटीएमएल). वेबइंडिया. अभिगमन तिथि: 2007.
- ↑ गुप्ता, इंदिरा (2004) (अंग्रेज़ी में). India’s 50 Most Illustrious Women. आइकॉन बुक्स. प॰ 38-40.
- ↑ "वह चीनी भाई" (एचटीएमएल). अभिव्यक्ति. अभिगमन तिथि: 2007.
- ↑ "नील आकाशेर नीचे" (अंग्रेज़ी में) (एचटीएमएल). मृणाल सेन. अभिगमन तिथि: 2007.
- ↑ "इंडिया पोस्ट" (अंग्रेज़ी में) (एचटीएमएल). इंडियनपोस्ट. अभिगमन तिथि: 2007.
- ↑ वांजपे, प्रो शुभदा (2006). पुष्पक (अर्ध-वार्षिक पत्रिका) अंक-6. हैदराबाद, भारत: कादम्बिनी क्लब. प॰ 113.
- ↑ "समापन समारोह है, तो मन भारी है" (एचटीएम). विश्व हिंदी सम्मेलन. अभिगमन तिथि: २००७.
- ↑ "भारतीय चिंतन परंपरा और ‘सप्तपर्णा’" (एचटीएम). साहित्यकुंज. अभिगमन तिथि: २००७.
- ↑ "हिन्दी की सरस्वतीः महादेवी वर्मा" (एचटीएमएल). सृजनगाथा. अभिगमन तिथि: 2007.
- ↑ "महादेवी: आँसू नहीं आग है" (एचटीएमएल). जागरण. अभिगमन तिथि: 2007.
- ↑ गुर्टू, शचीरानी. महादेवी वर्मा. प॰ 4.
- ↑ पालीवाल, कृष्णदत्त (2007). आजकल (मासिक पत्रिका). सी जी ओ कॉम्पलेक्स, लोदीरोड, नई दिल्ली-110 003: प्रकाशन विभाग, सूचना भवन. प॰ 15.
- ↑ वर्मा 1997, पृष्ठ 113
- ↑ उपाध्याय, राजेन्द्र (मार्च 2007). आजकल (मासिक पत्रिका). सी जी ओ कॉम्पलेक्स, लोदीरोड, नई दिल्ली-110 003: प्रकाशन विभाग, सूचना भवन. प॰ 66.
ग्रन्थसूची
|
|
बाहरी कड़ियाँ
![]() | विकिमीडिया कॉमन्स पर महादेवी वर्मा से सम्बन्धित मीडिया है। |
|
|
|
|
|
About 4,370 results (0.22 seconds)
Search Results
Gillu (Hindi Story) by Mahadevi Verma - YouTube
www.youtube.com/watch?v=oO5GDYCdlhw
Nov 14, 2012 - Uploaded by Kadir Khan
Do not forget to share & subscribe my channel Gillu (Hindi Story) by Mahadevi Verma. Mahadevi Varma best ...Mahadevi Verma, Jaidev, Asha Bhosle- Tum So Jao Main ...
www.youtube.com/watch?v=347zAFUVrQE
Sep 13, 2011 - Uploaded by Neeraj Mittal
A poem of Mahadevi Verma, one of the most popular Hindi poets of mid 20th century. She belonged to ...baanch_li_maine_vyatha( Mahadevi Verma ) - YouTube
www.youtube.com/watch?v=wR9lMk8aDgk
Jun 27, 2011 - Uploaded by mukesh sharma
Mahadevi Verma is considered one of the four pillars of the Chhayawadi yug alongwith Jayshankar Prasad ...manjeet marwaha reciting poem of mahadevi verma.wmv ...
www.youtube.com/watch?v=dnRL2UAu7TU
Mar 26, 2012 - Uploaded by Manjeet Marwaha
MahaKavi Mahadevi Verma poem Been Bhi Hoon main tumhari Ragini Bhi Hoon touches your heart. Manjeet ...Mahadevi Verma Poetry reciting Aroon Sharma. From ...
www.youtube.com/watch?v=wiD4Q5aqNXc
Mar 30, 2010 - Uploaded by Aroon Sharma
This poem is from famous Hindi poet Mahadevi Verma's poetry compilation "binda by mahadevi verma - YouTube
www.youtube.com/watch?v=BeoW5lXI5rE
Mar 26, 2015 - Uploaded by salkamas seysen
binda by mahadevi verma .... 3:55. Gillu by Mahadevi Verma(गिल्लू - महादेवी वर्मा) - Duration: 3:53. by E LEARNING 448 ...'Chhayavaad'- Mahadevi Varma - YouTube
www.youtube.com/watch?v=vT8nI3SQtys
Feb 10, 2014 - Uploaded by Ministry of Information & Broadcasting
Mahadevi Varma was an outstanding Hindi poet of Chhayavaad, a freedom fighter, woman's activist and an ...Voice of Mahadevi Varma - YouTube
www.youtube.com/watch?v=wP9-mpMS990
Jul 25, 2013 - Uploaded by Ministry of Information & Broadcasting
This clip contains an interaction with renowned Hindi writer and poet, Mahadevi Varma.Zindagi Ek Din.. Gheesa.wmv - YouTube
www.youtube.com/watch?v=75P_553tsAM
Dec 29, 2011 - Uploaded by Avanish Mohan
a story by none other than Mahadevi Verma ji.........retold by avanish......जाग तुझको दूर जाना Poem by Mahadevi Varma ...
www.poemhunter.com › Poems
Apr 5, 2012 - Rating: 5.5/10 - 20 votes
जाग तुझको दूर जाना by Mahadevi Varma. . . Page.
Stay up to date on results for mahadevi verma.
Create alert
About 1,14,000 results (0.41 seconds)
Search Results
Mahadevi Varma - Wikipedia, the free encyclopedia
https://en.wikipedia.org/wiki/Mahadevi_Varma
Mahadevi Varma (Hindi: महादेवी वर्मा) best known as an outstanding Hindi poet, and was a freedom fighter, woman's activist and educationist from India.
महादेवी वर्मा - विकिपीडिया
https://hi.wikipedia.org/wiki/महादेवी_वर्माTranslate this page
शोमर, करीन (1998), written at संयुक्त राज्य अमेरिका, Mahadevi Verma and the Chhayavad Age of Modern Hindi Poetry, ऑक्सफ़र्ड ...
महादेवी वर्मा का जीवन परिचय | Mahadevi Verma
www.bharatdarshan.co.nz/.../mhadevi-verma-biograp...Translate this page
महादेवी वर्मा | Mahadevi Verma. महादेवी वर्मा का जन्म 26 मार्चMahadevi Verma - Geeta Kavita
geeta-kavita.com/indian_poetry_list.asp?author=Mahadevi_Verma
Hindi Poet:Mahadevi Verma,Hindi Poems of Mahadevi Verma,Collection of Mahadevi Verma Hindi Indian Poems.Mahadevi Varma - Mahadevi Varma Biography - Poem Hunter
www.poemhunter.com › Mahadevi Varma
Mahadevi Varma's biography and life story.Mahadevi Varma (Hindi: महादेवी वर्मा) best known as an outstanding Hindi poet, was a freedom fighter, ...Mahadevi Varma - Mahadevi Varma Poems - Poem Hunter
www.poemhunter.com › Poets
Browse through Mahadevi Varma's poems and quotes. 9 poems of Mahadevi Varma. Phenomenal Woman, Still I Rise, The Road Not Taken, If You Forget Me,Mahadevi Varma - PoemHunter.com
www.poemhunter.com › Mahadevi Varma
Poem Hunter all poems of by Mahadevi Varma poems. 9 poems of Mahadevi Varma. Phenomenal Woman, Still I Rise, The Road Not Taken, If You Forget Me,महादेवी वर्मा (Mahadevi Verma) - AAzad.COM
www.aazad.com/mahadevi-verma.htmlTranslate this page
Hindi. महादेवी वर्मा. उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद जिले मे प्रसिद्ध लेखिका महादेवी वर्मा का जनम २६ मार्च सन १९०७ मे हुआ था| ...Gillu (Hindi Story) by Mahadevi Verma - YouTube
www.youtube.com/watch?v=oO5GDYCdlhw
Nov 14, 2012 - Uploaded by Kadir Khan
Do not forget to share & subscribe my channel Gillu (Hindi Story) by Mahadevi Verma. Mahadevi Varma best ...Mahadevi Varma - iloveIndia.com
www.iloveindia.com › Famous Indians › Writers
Here is given the biography of the renowned writer Mahadevi Varma. Check out the life history & works of Mahadevi Varma.- Mahadevi Varma
- Born: March 26, 1907, Farrukhabad
- Education: University Of Allahabad (1933), University Of Allahabad(1929)
Kharghar, Navi Mumbai, Maharashtra - From your Internet address - Use precise location
No comments:
Post a Comment